होली से डेढ़ माह पहले तक मौसम पूरी तरह असंतुलित था।
माघ-फाल्गुन का ऋतु सौंदर्य अदृश्य था।
होली से एक हफ्ते पहले तक आंधी-तूफान ने पूरे उत्तर भारत को धूल भरे वायुमंडल में बदल दिया था।
आंखों के लिये तो मौसम कुरूप था ही, गर्मी और उमस भी बढ़ गयी।
और इस प्रकार इस बार की होली पिछले 76 वर्षों में सबसे गर्म दिवस के रूप में दर्ज हो गयी।
बार-बार सुनायी पड़ने पर यह बात किसी को इरिटेट कर सकती है।
लेकिन प्रकृति और मौसम के बारे में हमें बार-बार ही नहीं, बल्कि क्षण-क्षण लिखना, बोलना और सोचना पड़ेगा।
इतना ही नहीं, प्रकृति के लिये कुछ करना भी पड़ेगा।
पेड़ नहीं लगा सकते तो मोटर गाड़ियां छोड़कर साइकिल पकड़ लें, किसी वृक्ष व पौधे में सुबह-शाम पानी ही डाल लें।
यह छोटे-छोटे उपाय प्रकृति को सुधारने में बड़े काम आयेंगे।
चिंतनीय विषय ।
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