मन तू हो स्थिर संस्थिर
किंचित ठहर क्षणभर
समय गति को छोड़
स्वयं को स्वयं हेतु,
संवेदनाओं से जोड़
रोक दे भागदौड़
वस्तुएं पाने की होड़
है एक जीवन अमूल्य
समझ प्रतिदिन का मूल्य
है अभिज्ञात विवशता
जीविका पर निर्भरता
लगा इस हेतु झोंक अपना
श्रम शरीर चाहे जितना
रख याद इतना परन्तु
पशु पक्षी नहीं तू जन्तु
जो अक्षर शब्द गीत संगीत
रंग राग प्रकृति सुंदर सुभीत
सभी को दे देगा विराम
जो तेरे अस्तित्व का परम धाम
भूलेगा कैसे तू वह "राम" नाम
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंरोम-रोम राममय हुआ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहै एक जीवन अमूल्य
जवाब देंहटाएंसमझ प्रतिदिन का मूल्य
है अभिज्ञात विवशता
जीविका पर निर्भरता
लगा इस हेतु झोंक अपना
श्रम शरीर चाहे जितना
जो अक्षर शब्द गीत संगीत
जवाब देंहटाएंरंग राग प्रकृति सुंदर सुभीत
सभी को दे देगा विराम
जो तेरे अस्तित्व का परम धाम
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ❗️🙏
कृपया मेरे ब्लॉग marmagyanet.blogspot.com पर "पिता" पर लिखी मेरी कविता और मेरी अन्य रचनाएँ भी अवश्य पढ़ें और अपने विचारों से अवगत कराएं.
पिता पर लिखी इस कविता को मैंने यूट्यूब चैनल पर अपनी आवाज दी है. उसका लिंक मैंने अपने ब्लॉग में दिया है. उसे सुनकर मेरा मार्गदर्शन करें. सादर आभार ❗️ --ब्रजेन्द्र नाथ
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसभी को दे देगा विराम ...... सटीक बात ।
जवाब देंहटाएंसभी को दे विराम क्यूंकि राम नाम ही परम धाम। राम राम विकेश जी
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