बुधवार, 26 अक्टूबर 2022

"राम" नाम

मन तू हो स्थिर संस्थिर

किंचित ठहर क्षणभर

समय गति को छोड़

स्वयं को स्वयं हेतु,

संवेदनाओं से जोड़

रोक दे भागदौड़

वस्तुएं पाने की होड़


है एक जीवन अमूल्य

समझ प्रतिदिन का मूल्य

है अभिज्ञात विवशता

जीविका पर निर्भरता 

लगा इस हेतु झोंक अपना

श्रम शरीर चाहे जितना


रख याद इतना परन्तु

पशु पक्षी नहीं तू जन्तु

जो अक्षर शब्द गीत संगीत

रंग राग प्रकृति सुंदर सुभीत

सभी को दे देगा विराम

जो तेरे अस्तित्व का परम धाम 

भूलेगा कैसे तू वह "राम" नाम