दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
में आजकल दो घटनाएं ऐसी हुईं, जिनके
घटने के बाद लोक सेवकों अर्थात् पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उचित काम किए जाने
पर भी शासन-प्रशासन और इनके प्रतिनिधि घटनाओं के लिए इन्हें ही उत्तरदायी ठहरा रहे हैं। एक ओर तो
देश का एक-एक आदमी सरकारी अकर्मण्यता, भ्रष्टाचार
पर आंख
मूंद कर रोष प्रकट कर रहा है तो दूसरी तरफ सरकारी स्तर का कोई जनकल्याणकारी कार्य
होता भी है तो उसे राजनीतिक परिभाषाओं के अन्तर्गत ऐसे सिद्ध किया जा रहा
है कि जैसे इस तरह का कार्य समाज विरोधी है। इन्हीं विडम्बनाओं का ही तो अभिशाप
है कि आज भारतभूमि का सिर बुरी तरह
कुचला, धंसा
हुआ है।
पिछले कई दिनों से दिल्ली के संभ्रान्त क्षेत्रों
में रात को
डेढ़ दो बजे बाइकर्स गैंग गैर-कानूनी स्टंटबाजी दिखा रहे हैं। इस दौरान वे यातायात कानून की
धज्जियां तो उड़ाते ही हैं इसके अलावा हर आने-जानेवाले से दुर्व्यवहार भी
करते हैं। इनसे तंग आकर पुलिसवालों ने 150
के करीब रहे बाइकर्स
को नियन्त्रित करने के लिए उनमें से एक की बाइक के टायर पर गोली चलाई। टायर के बजाय
गोली बाइक के पीछे बैठे लड़के पर लगी और वह अस्पताल में इलाज के दौरान मर
गया। ऐसे में पुलिस पर आरोप लगाना कि उसने गोली क्यों चलाई बड़ा ही अजीब
प्रश्न है। और इसके लिए पुलिस के विरुद्ध जिलाधिकारी को जांच के आदेश देना
यह भी उतनी ही अजीब बात है। इस ऊहापोह में सरकारी सामाजिक उत्तरदायित्व का
पूर्णाभाव साफ दिखाई देता है। जब पिछले कई दिनों से दिल्ली प्रशासन, पुलिस और जनता
बाइकर्स के आधी रात को किए जानेवाले आतंक से परेशान हैं और इन हालातों में बाइक
गैंग को घेरकर उनके खिलाफ कार्रवाई
करने में किसी बाइकर्स की मौत हो भी जाती है तो इसमें बजाय
पुलिस को उनके काम
के लिए प्रोत्साहित करने के मीडिया, सरकार, प्रशासन उलटे पुलिस
को ही कोसने
लगते हैं। क्या ऐसे में समाज के जिम्मेदार वर्ग द्वारा दिल्ली सरकार और बाइकर्स
गिरोह के घरवालों से प्रश्न नहीं किए जाने चाहिए कि आधी रात के बाद जवान
लड़के बाइक लेके कहां और किस काम के लिए घूम रहे हैं? क्या जवान लड़कों का आधी
रात के बाद सड़कों पर ऐसी गुंडागर्दी करना किसी सभ्य समाज, परिवार, समाज के लक्षण हैं? क्या यही वह भारत
निर्माण है, जिसके
नारे कांग्रेस
उछाल रही है? और
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि देश की राजधानी के संभ्रान्त
क्षेत्रों में जब ये विकराल अव्यवस्था है तो दूर-दराज के इलाकों की व्यवस्था
क्या होगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं होगा।
दूसरी
घटना में ग्रेटर नोएडा, सदर
की एसडीएम दुर्गाशक्ति नागपाल को उत्तर प्रदेश शासन ने सिर्फ इसलिए निलंबित कर
दिया कि उन्होंने सरकारी भूमि पर अवैध
तरीके से हो रहे धार्मिक स्थल निर्माण को तुड़वा दिया। यमुना खादर और हिंडन नदी के तटों से अवैध रुप
से रेत के खनन के विरुद्ध भी दुर्गाशक्ति ने कानूनी प्रक्रिया से
र्कारवाई की थी। परिणामस्वरुप नेताओं के रिश्तेदार,
खनन माफियाओं
को उनके रहते-रहते अवैध कारगुजारियों को करने में दिक्कत हो रही थी। उन्हें सज्जनता
और निष्ठा से सरकारी सेवा करने का फल अपने सेवा निलंबन के रुप में
प्राप्त हुआ।
ऐसे
में प्रश्न उठता है कि देश
का कोई भी सरकारी कर्मचारी यदि ईमानदारी, निष्ठा
से अपने कर्तव्यों का
निर्वाह करता है तो क्या सर्वोच्च शासन व्यवस्था उसे इसके लिए प्रोत्साहित करेगी
या उलटे उसके विरुद्ध ही दण्डात्मक कार्यवाही करेगी! और
ऐसे में कोई
भी राजकीय सेवक अपने कार्य को ईमानदारी से करने के लिए कैसे प्रेरित होगा जब उसे अच्छे, सच्चे बने रहने के
दुष्परिणाम झेलने पड़ें!
अन्ना
हजारे, अरविंद
केजरीवाल जैसे अनेक समाज सेवी इस समय कहां हैं?
इंडिया अगेंस्ट करप्शन के बैनर तले जिस मुहिम को वे आगे बढ़ा रहे
थे यानि कि
सरकारी क्षेत्र के भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए जिस तैयारी के साथ उनका आंदोलन चला था, देश-विदेश भ्रष्टाचार
के विरुद्ध कुछ समय के लिए एकजुट हो
गया था और उस एकजुटता की आंच में उन्होंने आंदोलन में शामिल सभी
लोगों को कसम दिलवाई थी कि भ्रष्टाचार का साथ नहीं देंगे,
तो अब इस समय जब कुछ सरकारी सेवक अपनी ईमानदारी के कारण और भ्रष्टाचार के
खिलाफ लड़ने के चलते शासकीय तौर पर गुनाहगार ठहराए जा रहे हैं, सेवा निलंबन झेल रहे
हैं तो ऐसे में इंडिया अंगेस्ट करप्शन के कार्यकर्ताओं को उनके साथ खड़े रहना
चाहिए। लेकिन अभी तक तो ऐसा न कुछ सुनाई दे रहा है और ना ही इस पर कहीं कोई
सुगबुगाहट ही हो रही है।