लड़खड़ाती
स्वतन्त्रता कभी भी किसी के पकड़े पकड़ में ही नहीं आती
चुपके से एक दिन का
अहसास दे तीनसौ चौंसठ दिन बेगानी हो जाती
इस ब्लॉग पर प्रस्तुत समस्त लेखन-सामग्री विकेश कुमार बडोला का मौलिक सृजन है। प्रकाशित सामग्री के किसी भी अंश को किसी भी प्रयोजनार्थ लेने से पूर्व लेखक की अनुमति अनिवार्य होगी। सम्पर्क हेतु इस मेल आइडी का प्रयोग करें - vikesh34@gmail.com, विशेष अनुरोध : जो महाशय इस ब्लॉग या इसके आलेखों और अन्य सामग्रियों तक पहुंचें और उन्हें पढ़ने का कष्ट करें वे कृपया पढ़ी गई सामग्री पर अपनी (समर्थन अथवा विरोध में) टीका-टिप्पणी अवश्य करें।
कटु यथार्थ .....
उत्तर देंहटाएंइसके लिए सचमुच अपने हृदय पर हाथ रखकर खुद से कुछ सवाल करने होंगे और खुद को ही कुछ ईमानदारी से जवाब देने होंगे. सोचिये हमने अपनी जन्मभूमि को माता का स्थान दिया है. यह देश सदियों से नारीत्व को सम्मान देने वाली गरिमामयी संस्कृति के लिए जाना जाता है अगर इस देश में नारी का किसी भी रूप में अपमान होता हैं, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज़ हत्या, स्त्री के मानमर्दन जैसी शर्मनाक घटनाएँ होती हैं. तो कैसे कह सकते है हम देशभक्त हैं? आपकी यह दिखावे की देशभक्ति देश के किस काम की? आपका राष्ट्रप्रेम किस काम का? जब तक भारत का नन्हा बचपन तिरंगा बेचने को मज़बूर रहेगा, तब तक हम नही कह सकेंगे कि भारत सही मायनों में आज़ाद हो गया है.
उत्तर देंहटाएंकम शब्दों मे व्यक्त परिपूर्ण कटु सत्यार्थ...!
उत्तर देंहटाएंसही कहा लेकिन स्वतन्त्रता की अनुभूति , महत्त्व और उस अनुभूति को बनाए रखने की कुछ जिम्मेदारी हमारी भी है । यह सच है कि कई स्तरों पर हमें परतन्त्रता व निराशा का सामना करना होता है फिर भी स्वतन्त्रता में कहीं दरार हैं तो उसका उत्तरदायी हर वह व्यक्ति है जिसके पास कुछ करने का अवसर है ।
उत्तर देंहटाएंबहुत ही सार्थक प्रस्तुति। स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
उत्तर देंहटाएंबहुत ही सार्थक प्रस्तुति। स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
उत्तर देंहटाएंएक कटु सत्य...
उत्तर देंहटाएंवाकई दूसरे दिन से ही आजादी का अहसास हवा में उड़ जाता है
उत्तर देंहटाएंकाम शब्दों में गहरी बात कह दी ---
बहुत खूब
आग्रह है --
आजादी ------ ???
मैं सहमत नहीं :-) स्वतंत्रता पकड़ में है मगर चंद चोर, लुच्चे लफंगे और देश द्रोहियों के !
उत्तर देंहटाएंउसी दिन की प्रतीक्षा है जिस दिन यह अपने अर्थ के अनुरूप हमारे जीवन में होगी.
उत्तर देंहटाएंसटीक एवं सत्य।
उत्तर देंहटाएंबहुत सुन्दर कटु यथार्थ भरी सामयिक चिंतन प्रस्तुति ..
उत्तर देंहटाएंजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
हूँ..... यही तो विडंबना है
उत्तर देंहटाएंशुक्रिया आपकी टिप्पणियों के लिए। बहुत सुन्दर बात कही है सारगर्भित भी।
उत्तर देंहटाएंशुक्रिया आपकी टिप्पणियों के लिए। बहुत सुन्दर बात कही है सारगर्भित भी।
उत्तर देंहटाएंकठोर सत्य ... पर दोष किसका ... खुद का, समाज की दिशा का या .... पथ-हीन मार्गदर्शकों का ...
उत्तर देंहटाएंसबके लिए विचारणीय प्रस्तुति !!
उत्तर देंहटाएंलाजवाब...
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